भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
नाउमीदी में भी गुल / कमलेश भट्ट 'कमल'
Kavita Kosh से
Dr.jagdishvyom (चर्चा) द्वारा परिवर्तित 15:24, 13 जनवरी 2007 का अवतरण
रचनाकार: कमलेश भट्ट 'कमल'
~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~
नाउमीदी में भी गुल अक्सर खिले उम्मीद के जिसने चाहे, रास्ते उसको मिले उम्मीद के।
जोड़ने वाली कोई क़ाबिल नज़र ही चाहिए हर तरफ बिखरे पड़े हैं सिलसिले उम्मीद के।
फिर नई उम्मीद ही आकर सहारा दे गई रास्ते में पाँव जब-जब भी हिले उम्मीद के।
दौलतों से, किस्मतों से जो नहीं जीते गए जीत लाएँगे पसीने, वो किले उम्मीद के।
कौन कहता है सफर में हम अकेले रह गए साथ हैं अब भी हमारे, क़ाफ़िले उम्मीद के।