भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
धूप के बारे में-2 / दिनेश डेका
Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 02:23, 17 फ़रवरी 2010 का अवतरण (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKAnooditRachna |रचनाकार=दिनेश डेका |संग्रह=मेरे प्रेम और विद्रोह की …)
|
पूस की शाम, मेघ चीरकर
मेरे पुकारने से ही आती है धूप
धूप मेरी परिचित है
धूप मेरी जन्म की दूत
धूप मेरी आत्मा का अनोखा स्पंदन।
मूल असमिया से अनुवाद : दिनकर कुमार