Last modified on 17 फ़रवरी 2010, at 08:15

राजा की आएगी बारात / शैलेन्द्र

Sandeep Sethi (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 08:15, 17 फ़रवरी 2010 का अवतरण (नया पृष्ठ: जब भी जी चाहे नई दुनिया बसा लेते हैं लोग<br /> एक चेहरे पे कई चेहरे लगा…)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)

जब भी जी चाहे नई दुनिया बसा लेते हैं लोग
एक चेहरे पे कई चेहरे लगा लेते हैं लोग

याद रहता है किसे गुज़रे ज़माने का चलन
सर्द पड़ जाती है चाहत हार जाती है लगन
अब मोहब्बत भी है क्या इक तिजारत के सिवा
हम ही नादां थे जो ओढ़ा बीती यादों का क़फ़न
वरना जीने के लिए सब कुछ भुला देते हैं लोग

जाने वो क्या लोग थे जिनको वफ़ा का पास था
दूसरे के दिल पे क्या गुज़रेगी ये एहसास था
अब हैं पत्थर के सनम जिनको एहसास ना हो
वो ज़माना अब कहाँ जो अहल-ए-दिल को रास था
अब तो मतलब के लिए नाम-ए-वफ़ा लेते हैं लोग