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कौन जाने इस शहर को / कमलेश भट्ट 'कमल'

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रचनाकार: कमलेश भट्ट 'कमल'

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कौन जाने इस शहर को क्या हुआ है दोस्तो

अजनबी-सा हर कोई चेहरा हुआ है दोस्तो।


मज़हबों ने बेच दी है मन्दिरों की आत्मा

मस्जिदों की रूह का सौदा हुआ है दोस्तो।


कौन मानेगा यहाँ पर भी इबादतगाह थी

ज़र्रा-ज़र्रा इस क़दर सहमा हुआ है दोस्तो।


कुछ दरिन्दे और वहशी लोग रहते हैं यहाँ

आप सबको भ्रम शरीफों का हुआ है दोस्तो।


ज़िन्दगी आने से भी कतराएगी बरसों-बरस

हर गली में मौत का जलसा हुआ है दोस्तो।


हर कोई झूठी तसल्ली दे रहा है इन दिनों

ये शहर रूठा हुआ बच्चा हुआ है दोस्तो।


ज़िन्दगी फिर भी रहेगी ज़िन्दगी, हारेगी मौत

पहले भी मंज़र यही देखा हुआ है दोस्तो।