सुना है- ममता के स्वभाववश माता की छाती से झर-झर दूध छलकता है
मैं तो अल्हड़ बचपन से झुकी हुई सांवली घटाओं में धारासार दूध बरसता हुआ देखता चला आ रहा हूँ।
आत्मविभोर कर देने वाला यह विस्मय मुझे प्रकृति के प्रति अथाह कृतज्ञता से भर देता है।
सुना है- ममता के स्वभाववश माता की छाती से झर-झर दूध छलकता है
मैं तो अल्हड़ बचपन से झुकी हुई सांवली घटाओं में धारासार दूध बरसता हुआ देखता चला आ रहा हूँ।
आत्मविभोर कर देने वाला यह विस्मय मुझे प्रकृति के प्रति अथाह कृतज्ञता से भर देता है।