Last modified on 27 फ़रवरी 2010, at 19:16

खेलत फाग सुहाग भरी / रसखान

खेलत फाग सुहाग भरी, अनुरागहिं लालन क धरि कै ।
भारत कुंकुम, केसर की पिचकारिन में रंग को भरि कै ॥
गेरत लाल गुलाल लली, मनमोहन मौज मिटा करि कै ।
जात चली रसखान अली, मदमस्त मनी मन कों हरि कै ॥