भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

एक,दो,तीन,आजा मौसम है रंगीन / शैलेन्द्र

Kavita Kosh से
Sandeep Sethi (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 10:25, 1 मार्च 2010 का अवतरण

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

एक दो तीन, आजा मौसम है रंगीन
आजा...

रात को छुप-छुप के मिलना
दुनिया समझे पाप रे
सम्हलके खिड़की खोल बलमवा
देखे तेरा बाप रे!
आजा...

ये मदमस्त जवानी है
तेरे लिये ये दिवानी है
डूब के इस गहराई में
देख ले कितना पानी है
आजा...

क्यूँ तू मुझे ठुकराता है
मुझसे नज़र क्यूँ चुराता है
लूट ये दुनिया तेरी है
प्यार से क्यूँ घबराता है
आजा...