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कारे बदरा तू न जा / शैलेन्द्र

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ओ पंछी प्यारे सांझ सखा रे
बोले तू कौन सी बोली बता रे

मैं तो पंछी पिंजरे की मैना
पँख मेरे बेकार
बीच हमारे सात रे सागर
कैसे चलूँ उस पार
ओ पंछी प्यारे ...

फागुन महीना फूली बगिया
आम झरे अमराई
मैं खिड़की से चुप चुप देखूँ
ऋतु बसंत की आई
ओ पंछी प्यारे ...