भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

तुम्हारे हैं तुमसे दया माँगते हैं / शैलेन्द्र

Kavita Kosh से
Sandeep Sethi (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 10:32, 1 मार्च 2010 का अवतरण ()

यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

जोगी जबसे तू आया मेरे दवारे
मेरे रँग गए सांझ सखारे
तू तो अँखियों में जाने जी की बतियाँ
तौसे मिलना ही ज़ुल्म भया रे
ओ जोगी जबसे ...

देखी साँवली सूरत ये नैना जुड़ाए
तेरी छबी देखी जबसे रे नैना जुड़ाए
भए बिन कजरा ये कजरारे

जाके पनघट पे बैठूँ मैं, राधा दीवानी
बिन जल लिए चली आयूँ, राधा दीवानी
मोहे अजब ये रोग लगा रे
ओ जोगी जबसे तू ...

मीठी मीठी अगन ये, सह न सकूँगी
मैं तो छुई-मुई अबला रे, सह न सकूँगी
मेरे और निकट मत आ रे
ओ जोगी जबसे तू ...