भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

रामकहानी / संध्या पेडणेकर

Kavita Kosh से
JaiJuee (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 19:56, 1 मार्च 2010 का अवतरण (नया पृष्ठ: रामकहानी / संध्या पेडण॓कर <poem> इसकी, उसकी, तेरी, मेरी सबकी एक सी राम…)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

रामकहानी / संध्या पेडण॓कर

इसकी, उसकी, तेरी, मेरी
सबकी एक सी राम कहानी
आओ कुछ नया करें
खुद अपने निर्णय लें
और खुद अपनी राहें ढूंढें

हीरों को कराएं छुटपन से
राह की पहचान
नैनों को दे सामनेवाले को
चीर कर आर पार देखने की ताकत
दो गिलास दूध मुन्ने को
तो दो गिलास दूध मुन्नी को भी
नया बस्ता राजू को
तो नया बस्ता रानी को भी
नयी रहे टटोलने की आजादी
दोनों को दें
दोनों की आँखों के सपनों को
रंग दें

लेकिन यह सब करने से पहले
समय पर शाम का खाना बना दें
संघर्ष की शुरुआत वर्ना यहीं से होगी
नई यह कहानी भी फिर
शाम के खाने पर कुर्बान हो जाएगी!