भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
अगर हम / रामकुमार कृषक
Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 12:39, 2 मार्च 2010 का अवतरण (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=रामकुमार कृषक |संग्रह=लौट आएँगी आँखें / रामकुमा…)
न छल होता न प्रपंच
न स्वार्थ होता न मंच
न चादर होती न दाग़
न फूस होता न आग
न प्राण होते न प्रण
न देह होती न व्रण
न दुष्ट होते न नेक
न अलग होते न एक
न शहर होते न गाँव
न धूप होती न छाँव
अगर हम जानवर होते
रचनाकाल : 1971-1981