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सबकी बात न माना कर / कुँअर बेचैन
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रचनाकार: कुँवर बेचैन
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सबकी बात न माना कर
खुद को भी पहचाना कर
दुनिया से लडना है तो
अपनी ओर निशाना कर
या तो मुझसे आकर मिल
या मुझको दीवाना कर
बारिश में औरों पर भी
अपनी छतरी ताना कर
बाहर दिल की बात न ला
दिल को भी तहखाना कर
शहरों में हलचल ही रख
मत इनको वीराना कर
-- यह ग़ज़ल Dr.Bhawna Kunwar द्वारा कविता कोश में डाली गई है।