Last modified on 3 मार्च 2010, at 11:26

सत्रह साल की लड़की / नीलेश रघुवंशी

अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 11:26, 3 मार्च 2010 का अवतरण

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)

सत्रह साल की लड़की के स्वपन में
आसमान नहीं है
पेड़, पहाड़ और तपती दोपहर नहीं
सुबह की एक आँच भी नहीं
घर में फुदकती चिड़िया-सी लड़की
सपना देखती है बस
अठारह की होने और घर बसाने का ।

लड़की ने तलाशा सुख
हमेशा औरों में
खुद में कभी कुछ तलाशा ही नहीं
सिखाया गया उसे हर वक़्त यही
लड़की का सुख चारदीवारी के भीतर है
सोचती है लड़की
सिर्फ़ एक घर के बारे में ।

लड़की जो घर की उजास है
हो जाएगी एक दिन ख़ामोश नदी
ख़ामोशी से करेगी सारे कामकाज
चाल में उसके नहीं होगी
नृत्य की थिरकन
पाँव भारी होंगे पर थिरकेंगे कभी नहीं
युगों-युगों तक रखेगी पाँव धीरे-धीरे
धरती पर चलते
धरती के बारे में कभी नहीं
सोचेगी लड़की ।

कभी नहीं चाहा लोगों ने
लड़की भी बैठे पेड़ पर
ख़ुद लड़की ने नहीं चाहा कभी
चिडि़यों की तरह उड़ जाना
नहीं चाहा छू लेना आकाश ।

कभी नहीं देख पाएगी लड़की
आसमान से निकलती नदी
नदी से निकलते पहाड़
पहाड़ों के ऊपर उड़ती चिड़िया
नहीं आ पाएगी कभी
लड़की की आँखों में ।

ओ मेरी बहन की तरह
सत्रह साल की लड़की
दौड़ते हुए क्यों नहीं निकलत जाती
मैदानों में
क्यों नहीं छेड़ती कोई तान
तुम्हारे सपनों में क्यों नहीं है
कोई उछाल !