भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

वक़्त का जादू / मुकेश मानस

Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 02:46, 4 मार्च 2010 का अवतरण

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

हिन्दी शब्दों के अर्थ उपलब्ध हैं। शब्द पर डबल क्लिक करें। अन्य शब्दों पर कार्य जारी है।

भोले-भाले मासूम बच्चे
खेलते-खेलते गायब हो जाएं
 
अल्ल-सुबह घूमने निकले बुजुर्ग
लौटकर घर न आएं
 
चहकती-महकती लड़कियां
ख़ौफ़ज़दा पुतलियों में बदल जाएं
 
देखते-देखते खुशबूदार फूल
धारदार शूल बन जाएं
 
हमने पहले तो नहीं देखा
भई वाह!
कैसा जबरदस्त जादू है
जो यह वक्त हमें दिखा रहा है।

रचनाकाल : जून 2000