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हत्यारे / नीलेश रघुवंशी

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आएँगे हत्यारे
और ग़ायब हो जाएँगे
पल भर में जुगनू की तरह हँसते-गाते दिन।

चेहरे खुले होंगे हत्यारों के
नहीं होंगे नक़ाब।

तलाशेंगे बच्चे उनमें परिचित चेहरा
औरतें करेंगी कुछ याद करने की कोशिश
पर पहचाने नहीं जाएँगे हत्यारे
हत्यारे सिर्फ़ हत्यारे होंगे।

हत्यारोंका निशानाहोंगे अब
खुले मैदान और फूलों से भरे बगीचे
ले जाएँगे वे अपने साथ
त्यौहारों से भरे दिन।

होते हैं हत्यारे फ़िराक़ में
नई-नई इच्छाओं नए-नए स्वप्नों के।
एक्दिन
सारे उत्सव और त्यौहार
होंगे हत्यारों की झोली में।