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राधा तो बस वही / चंद्र रेखा ढडवाल
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कैसे कैसे वह
बहला लेती है मन को
कि अथाह है
प्रियतम की प्यास
इसी से
ओस की बूंद से
समुद्र तक
जो जहाँ मिले
पी जाना चाहता है
अधिष्ठात्री देवी राधा तो
बस वही
बाकी तो गोपियों संग
कन्हैया की-सी
छेड़-छाड़ है थोड़ी