भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
हौसला हो / चंद्र रेखा ढडवाल
Kavita Kosh से
द्विजेन्द्र द्विज (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 10:10, 7 मार्च 2010 का अवतरण (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=चंद्र रेखा ढडवाल |संग्रह=औरत / चंद्र रेखा ढडवाल }}…)
वक़्त आ गया है
कि चोंच में
दबे तिनके को
छूट जाने दो
और बिना चाह के
बिना आग्रह के
उड़ो ऊँचाइयों को पकड़ने
पर हैं तो उड़ोगी ही
निशित पर यह मत जानो
नहीं हैं तो नहीं उड़ोगी
यह भी मत मानो
जानने का दम्भ क्यों पालो
मान लेने की विवशता भी क्यों हो
जी लेने की ललक हो
उड़ जाने का हौसला हो बस