भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

आज़माए को आजमाएँ क्यों / चाँद शुक्ला हदियाबादी

Kavita Kosh से
द्विजेन्द्र द्विज (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 17:48, 7 मार्च 2010 का अवतरण (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=चाँद हादियाबादी }} {{KKCatGhazal}} <poem> हम उन्हें फिर गले लग…)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

हम उन्हें फिर गले लगाएँ क्यों
आज़माए को आजमाएँ क्यों

जब यह मालूम है कि डस लेगा
साँप को दूध फिर पिलाएँ क्यों
 
जब कोई राबता नहीं रखना
उनके फिर आस -पास जाएँ क्यों
 
हो गया था मुग़ालता इक दिन
बार -बार अब फ़रेब खाएँ क्यों
 
जब के उनसे दुआ- सलाम नहीं
मेरी ग़ज़लें वो गुनगुनाएँ क्यों
 
"चाँद" तारों से वास्ता है जब
हम अँधेरों को मुँह लगाएँ क्यों