भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
उन्होंने बांध दिया है / अमरजीत चंदन
Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 02:46, 8 मार्च 2010 का अवतरण
उन्होंने बांध दिया है
सतलुज को
घोड़े-सा सरपट दौड़ता वेग, लगभग
उन्होंने बांध ली है
अयालों-सी लहराती सतलुज की लहरें, लगभग
वे चाहते हैं
सतलुज भूल जाए अपना नाम
वे चाहते हैं
सतलुज भूल जाए अपना धाम
पर वे बांध नहीं सके हवाएँ मुँहज़ोर
वे बांध नहीं सके गरजते मेघ
बिफ़रा पानी बहता है किनारे खोरता
तटों पर पड़ी हैं औंधे मुँह किश्तियाँ
सतलुज आज एक बार फिर सतलुज है
सतलुज हमारी रगों में बह रहा है लहू-सा
सतलुज है सदाबहार रुत जवानी की ।
सतलुज= पंजाब की पाँच नदियों में से एक । इसके किनारे भगत सिं, राजगुरू और सुखदेव की लाशों को 24 मार्च 1931 के दिन जलाया
गया था । तब से सतलुज महज एक नदी नहीं है ।--- (कवि)
मूल पंजाबी भाषा से अनुवाद :