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कहूँ जो हाल, तो कहते हो / ग़ालिब

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कहूं जो हाल तो कहते हो, 'मुद्द`आ कहिये'
तुम्हीं कहो कि जो तुम यूं कहो तो क्या कहिये

न कहियो त`न<ref>कटाक्ष</ref> से फिर तुम, कि हम सितमगर हैं
मुझे तो ख़ू<ref>आदत</ref> है कि जो कुछ कहो, बजा कहिये<ref>हाँ में हाँ मिलाना</ref>

वह नश्तर<ref>बर्छा</ref> सही, पर दिल में जब उतर जावे
निगाह-ए-नाज़<ref>अदा भरी नज़र</ref> को फिर क्यूं न आशना<ref>प्रेमी</ref> कहिये

नहीं ज़रीहाए-राहत<ref>चैन का साधन</ref> जराहत-ए-पैकां<ref>तीर का घाव</ref>
वह ज़ख़्म-ए-तेग़<ref>तलवार का घाव</ref> है जिस को कि दिल-कुशा<ref>सुखद</ref> कहिये

जो मुद्द`ई<ref>दुश्मन</ref> बने, उस के न मुद्द`ई बनिये
जो ना-सज़ा<ref>अनुचित बोले</ref> कहे उस को न ना-सज़ा कहिये

कहीं हक़ीक़त-ए-जां-काही-ए-मरज़<ref>रोग के कष्ट की सच्चाई</ref> लिखिये
कहीं मुसीबत-ए-ना-साज़ी-ए-दवा<ref>दवा के काम न आने की कठिनाई</ref> कहिये

कभी शिकायत-ए रंज-ए गिरां-निशीं<ref>जम कर बैठ जाने वाले दुःख की शिकायत</ref> कीजे
कभी हिकायत-ए सब्र-ए गुरेज़-पा<ref>भागने वाले धीरज की कथा</ref> कहिये

रहे न जान, तो क़ातिल को ख़ूं-बहा<ref>ख़ून की कीमत</ref> दीजे
कटे ज़बान तो ख़ंजर को मरहबा<ref>स्वागत करना, दुआ देना</ref> कहिये

नहीं निगार<ref>प्रेयसी</ref> को उल्फ़त न हो निगार तो है
रवानी-ए-रविश<ref>मंथर गति की सुँदरता</ref>-ओ-मस्ती-ए-अदा कहिये

नहीं बहार को फ़ुरसत, न हो बहार तो है
तरावत-ए-चमन<ref>बाग़ की ताज़गी</ref>-ओ-ख़ूबी-ए-हवा कहिये

सफ़ीना<ref>नाव</ref> जब कि किनारे पे आ लगा 'ग़ालिब'
ख़ुदा से क्या सितम-ओ-जोर-ए-ना-ख़ुदा<ref>नाव चलाने वाले कठोरता और अत्याचार</ref> कहिये

शब्दार्थ
<references/>