बाज़ीचा-ए-अत्फ़ाल है दुनिया मेरे आगे / ग़ालिब
बाज़ीचा-ए-अतफ़ाल<ref>बच्चों के खेल(खिलौना)</ref> है दुनिया, मेरे आगे
होता है शब-ओ-रोज़<ref>रात और दिन</ref> तमाशा, मेरे आगे
इक खेल है औरंग-ए-सुलेमां<ref>सुलेमान का राजसिंहासन</ref> मेरे नज़दीक
इक बात है ऐजाज़-ए-मसीहा<ref>ईसा का चमत्कार जिनकी फूँक से मुर्दे जीवित हो उठते थे</ref>, मेरे आगे
जुज़<ref>के सिवा</ref> नाम, नहीं सूरत-ए-आ़लम<ref>संसार का अस्तित्व</ref> मुझे मंज़ूर
जुज़ वहम, नहीं हस्ती-ए-अशया<ref>हस्ती जैसी चीज़</ref>, मेरे आगे
होता है निहां<ref>लुप्त</ref> गर्द में सहरा मेरे होते
घिसता है जबीं<ref>माथा</ref> ख़ाक पे दरिया, मेरे आगे
मत पूछ कि क्या हाल है मेरा तेरे पीछे
तू देख कि क्या रंग है तेरा, मेरे आगे
सच कहते हो, ख़ुदबीन-ओ-ख़ुदआरा<ref>गर्वित और आत्म-अलंकृत</ref> हूँ, न क्योँ हूँ
बैठा है बुत-ए-आईना सीमा<ref>दर्पण जैसा चमकने वाला माशूक</ref>, मेरे आगे
फिर देखिये अन्दाज़-ए-गुलअफ़्शानी-ए-गुफ़्तार<ref>बात का अंदाज़ यूँ कि जैसे फूल झड़ते हों</ref>
रख दे कोई पैमाना-ए-सहबा<ref>मधुपात्र और मदिरा</ref>, मेरे आगे
नफ़रत का गुमां गुज़रे है, मैं रश्क से गुज़रा
क्योंकर कहूँ, लो नाम ना उनका मेरे आगे
ईमां मुझे रोके है, जो खींचे है मुझे कुफ़्र<ref>अधर्म</ref>
काबा मेरे पीछे है, कलीसा<ref>गिरजाघर</ref> मेरे आगे
आशिक़ हूँ, पे माशूक़-फ़रेबी<ref>माशूक को रिझाने का काम</ref> है मेरा काम
मजनूं को बुरा कहती है लैला, मेरे आगे
ख़ुश होते हैं, पर वस्ल में, यूँ मर नहीं जाते
आई शब-ए-हिजरां<ref>विरह-रात्रि</ref> की तमन्ना, मेरे आगे
है मौज-ज़न<ref>लहरें मारता हुआ</ref> इक क़ुल्ज़ुम-ए-ख़ूँ<ref>रक्त का समुद्र</ref> काश! यही हो
आता है अभी देखिये क्या-क्या, मेरे आगे
गो हाथ को जुम्बिश<ref>हरक़त</ref> नहीं, आँखों में तो दम है
रहने दो अभी साग़र-ओ-मीना<ref>शराब का प्याला और सुराही</ref>, मेरे आगे
हमपेशा-ओ-हम-मशरब-ओ-हमराज़<ref>सहव्यवसायी,मेरे जैसा शराबी और विश्वासपात्र</ref> है मेरा
'ग़ालिब' को बुरा क्यों, कहो अच्छा, मेरे आगे