भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

अगर मैं हो पाता / अशोक वाजपेयी

Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 15:31, 20 मार्च 2010 का अवतरण (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=अशोक वाजपेयी |संग्रह=उम्मीद का दूसरा नाम / अशोक …)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

अगर मैं हो पाता
उसकी आँखों में पानी की लकीर,
उसके कुचाग्रों का कत्थईपन,
उसकी जाँघ पर पसीने की बूँद,
उसकी शिराओं में से एक में
रक्त जो उसके हृदय से
भाग रहा होता शुद्ध होकर,
एक पुस्तक पर धूल का धब्बा
जिसे वह सप्ताह भर नहीं खोलेगी,
हवा
जो उसके ऊपर गरमाहट-भरी छाई है
जब वह गहरे सोई है,
बर्फ़ का एक फ़ाहा
जो खिड़की के बन्द काँच पर चुपचाप बैठा उसे
निहारता है।

अगर मैं पाता...