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हमारे शौक़ की ये इन्तहा थी / जावेद अख़्तर

हमारे शौक़ की ये इन्तिहा थी
क़दम रखा कि मंज़िल रास्ता थी

कभी जो ख़्वाब था वो पा लिया है
मगर जो खो गई वो चीज़ क्या थी

मोहब्बत मर गई मुझको भी ग़म है
मेरे अच्छे दिनों की आशना थी

जिसे छू लूँ मैं वो हो जाये सोना
तुझे देखा तो जाना बद्दुआ थी

मरीज़े-ख़्वाब को तो अब शफ़ा<ref>आराम, रोग से मुक्ति</ref> है
मगर दुनिया बड़ी कड़वी दवा थी

शब्दार्थ
<references/>