भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

ख़लिश / हरकीरत हकीर

Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 15:58, 3 अप्रैल 2010 का अवतरण (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=हरकीरत हकीर }} {{KKCatNazm}} <Poem> यूँ क़रीब से न गज़रा कर अय …)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

यूँ क़रीब से
न गज़रा कर
अय सबा!

तेरे क़दमों की
आहट भी
खलिश दे जाती है

कभी मुहब्बत...
मेरे दर आई जो नहीं...!!