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यह हृदय की पीर / विनोद तिवारी
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यह हृदय की पीर
है नयन में नीर
तोड़ डालो आज
दंभ की प्राचीर
कुछ न मेरा,सब
आपकी जागीर
क्या कहें कितना
नीर, कितना क्षीर
कहो रोया कौन
बैठ नदिया तीर
प्रेम का ही तो
रोग है गंभीर