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पस्त हैं इन दिनों / विनोद तिवारी

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पस्त हैं इन दिनों
त्रस्त हैं इन दिनों

स्वप्न भी शाप से
ग्रस्त हैं इन दिनों

चाँद -तारे मेरे
अस्त हैं इन दिनों

मूल्य जो थे बचे
ध्वस्त हैं इन दिनों

दोस्त मिलते नहीं
व्यस्त हैं इन दिनों

ज़ख़्म इतने मिले
मस्त हैं इन दिनों