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फूस–पत्ते अगर नहीं मिलते / ओमप्रकाश यती


फूस–पत्ते अगर नहीं मिलते
कितने लोगों को घर नहीं मिलते।

देखना चाहते हैं हम जिनको
स्वप्न वो रात भर नहीं मिलते।

जंगलों में भी जाके ढूँढ़ो तो
इस क़दर जानवर नहीं मिलते।

दूर परदेश के अतिथियों से
दौड़कर के नगर नहीं मिलते।

चाहती हैं जो बाँटना खुशबू
उन हवाओं को ‘पर’ नहीं मिलते।