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चाँदनी / उदयप्रताप सिंह

जब से सँभाला होश मेरी काव्य चेतना ने
    मेरी कल्पना में आती-जाती रही चाँदनी ।
आधी-आधी रात मेरी आँख से चुरा के नींद
    खेत खलिहान में बुलाती रही चाँदनी ।
सुख में तो सभी मीत होते किन्तु दुख में भी
    मेरे साथ साथ गीत गाती रही चाँदनी ।
जाने किस बात पे मैं चाँदनी को भाता रहा
    और बिना बात मुझे भाती रही चाँदनी ।