भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
कविता-1 / लाल्टू
Kavita Kosh से
Pradeep Jilwane (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 12:11, 25 अप्रैल 2010 का अवतरण (नया पृष्ठ: सबने जो कहा<br /> उससे अलग<br /> बाकी सिर्फ धुंध था<br /> <br /> शब्द उगा<br /> सबने…)
सबने जो कहा
उससे अलग
बाकी सिर्फ धुंध था
शब्द उगा
सबने कहा
गुलाब खूबसूरत
शब्द घास तक पहुंचा
किसी ने देखी
घास की हरीतिमा
किसी ने देखा
घास पैरों तले दबी
धुंध का स्वरूप
जब जहॉं जैसा था
वैसा ही चीरा उसे शब्द ने.