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रंग : छह कविताएँ-3 (पीला) / एकांत श्रीवास्तव
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इस रंग के बारे में
कोई भी कथन इस वक्त
कितना दुस्साहसिक काम है
जब जी रहे हैं इस रंग को
गेंदे के इतने और इतने सारे फूल
जब हॅंस रहे हों
पृथ्वी पर अजस्ञ फूल
सरसों और सूरजमुखी के
सूर्य भी जब चमक रहा हो
ठीक इसी रंग में
और यही रंग जब गिर रहा हो
सारी दुनिया की देह पर
यह रंग हल्दी की उस गॉंठ का है
जो सिल पर लोढ़े के ठीक नीचे
पिसी जाने के इंतजार में है
यह एक बहुत नाजुक रंग है
जिससे रंगी है
लड़कियों की चुन्नी और नींद
सुनो! मुझे खुशी है
कि मैं इस रंग से चीजों को जुदा करने की
साजिश में शामिल नहीं हूं.