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पानी की नींद / एकांत श्रीवास्तव
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दो आदमी
पार करते हैं सोन
सॉंझ के झुटपुटे में
तोड़कर पानी की नींद
इस पार जंगल
उस पार गाँव
और बीच में सोन
पार करते हैं दो आदमी
गमछों में बॉंधकर करौंदे और जामुन
कंधों पर कुल्हाडियॉं
और सिरों पर लकडियॉं लिये
लकडियॉं जो जलेंगी उनके घर
और खुशी से फूलकर
कुप्पा हो जाएँगी रोटियाँ
कुप्पा हो जाएँगे दो घरों के मन
हरहराता है जंगल
उन्हें विदा देने
सोने के किनारे तक आती है
मकोई के फूलों की गंध
और वापस लौट जाती है
उनके जाने के बाद भी
देर रात तक
जागता रहता है पानी।