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घर / एकांत श्रीवास्तव
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यह घर
क्या इतनी आसानी से गिर जायेगा
जिसमें भरी है
मेरे बचपन की चौकड़ी
दीवारों में है आज भी
पुराने दिनों की खुशबू
ओ घर
कितनी बार छुपा-छुपी में
तेरे दरवाजों के पीछे छुपा मैं
कितनी गौरयों ने घोंसले बनाये
तेरे रोशनदान में
कितनी बार
भविष्य की गहरी चिंता में
बुदबुदाये पिता
कितने दिये थरथराये
मां की प्रार्थना में
ओ घर
मैंने कहां तक याद किया पहाड़ा
मैंने कितने गीत गाये तुझमें
यह घर
हमारा सबसे आत्मीय परिजन
हर दुःख हर सुख में
जो रहा हरदम हमारे साथ
क्या इतनी आसानी से गिर जायेगा
ओ घर
मैं तुझे गिरने नहीं दूंगा.