एक बेरोज़गार प्रेमी का आत्मालाप / एकांत श्रीवास्तव
जो भूखा होगा
प्यार कैसे करेगा श्रीमान्?
पार्क की हरियाली खत्म कैसे करेगी
जीवन का सूखा?
जब मैं झुकता हूं
प्रेमिका के चेहरे पर
चुम्बन नहीं, नौकरी मांगते हैं उसके होंठ
प्रेम-पार्क की बेगन बेलिया
रोजगार की समस्या में
क्या कोई सार्थक भूमिका निभा पायेगी महोदय?
मोतिया, जूही और चम्पा के सामने
कैसे सिर उठा पायेंगे
हमारी रफू वाली कमीजों पर
छोटी बहन के हाथों कढ़े हुए फूल?
आप बिछा दें हरी घास का गलीचा
फिर भी बची रहेगी एक जली हुई जमीन
प्रेमिकाओं की नींद और हमारे भविष्य में
उड़ेगी जिसकी राख
वे आंसू
जो अभी बहे नहीं हैं प्रेमिकाओं के गालों पर
रात भर बुदबुदाते हैं- यहां कुछ नहीं उगता
यहां शायद कुछ नहीं उगेगा
एक दिन जब हमें मिलेंगी
प्रेमिकाओं की चिट्ठियां
जिनमें चिन्हित होगा उनका मंगल परिणय
और सब कुछ भूल जाने का अनुरोध
हमें सड़क और उसकी धूल ही
अच्छी लगेगी श्रीमान्
तब आपके पार्क में जहां
स्मृतियां होंगी तितलियों-सी उड़ती हुई
हम चुपचाप रो भी तो नहीं सकेंगे श्रीमान्!