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ओ पृथ्वी-1 / एकांत श्रीवास्तव

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हमारी आंखों में
कसमसा रहा है जल
ओ पृथ्‍वी
अभी रहेगा तेरा हरापन

तेरी कोख में सोया हुआ बीज
पौधा भी बनेगा, पेड़ भी

आंसुओं में नमक की तरह
घुल गया है गुस्‍सा
ओ पृथ्‍वी
अभी रहेगी तेरी ऊष्‍मा
पककर तैयार होंगे जिसमें
कुम्‍हार के घड़ों की तरह
हमारे सपने

धीरे-धीरे सही
टूट रहा है सन्‍नाटा
उठ रही है हमारी बांसुरी से एक धुन
हमारी थकान में फैल रहा है
भीगे पत्‍तों का ताजापन

ओ पृथ्‍वी
अभी रहेगा तेरा संगीत
जिसे गाते-गाते लड़ेंगे हम
तेरी ऊष्‍मा
हरापन
और संगीत के लिए.