भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

मैं / एकांत श्रीवास्तव

Kavita Kosh से
Pradeep Jilwane (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 16:24, 30 अप्रैल 2010 का अवतरण (नया पृष्ठ: मैं गेहूं का पका खेत हूं<br /> चिडियों! मुझे चुग लो<br /> मैं वीरान जंगल क…)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

मैं गेहूं का पका खेत हूं
चिडियों! मुझे चुग लो
मैं वीरान जंगल का झरना हूं
मुसाफिर! मुझमें नहा लो

मैं आषाढ़ का पानी हूं
पहाड़ों! मुझे गिरा दो
मैं खलिहान का बुझा हुआ दिया हूं
मॉं! मुझे जला दो

मैं जल में सोया संगीत हूं
पवन! मुझे जगा दो
मैं क्रोध का ठंडा पत्‍थर हूं
सूर्य! मुझे तपा दो.