Last modified on 1 मई 2010, at 14:04

कविता की ज़रूरत-2 / एकांत श्रीवास्तव

Pradeep Jilwane (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 14:04, 1 मई 2010 का अवतरण (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=एकांत श्रीवास्तव |संग्रह=अन्न हैं मेरे शब्द / ए…)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)

जिस समय जाल
पानी में फेंका जा चुका होगा
जिस समय बीज
खेतों में बोये जा चुके होंगे
जिस समय एक नाव
नदी की सबसे तेज धार को
काट रही होगी
उसी समय
उसी समय पैदा होगी
कविता की जरूरत

जिस समय
पकते फलों की सुगंध से बेचैन हो
उतरेंगे वृक्षों पर जंगली तोते
बाढ़ में डूबी पृथ्‍वी की पहली सिसकी
सुनायी देगी जिस समय
और एक घर के भरभराकर
गिरने की आवाज
घने जंगलों के बीच
भूखे लोगों के पड़ाव में
खौलता हुआ अदहन
जिस समय मांगेगा अन्‍न
उसी समय
उसी समय पैदा होगी
कविता की जरूरत.
</‍Poem>