भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
पहिले से भीगा मन / शकुन्त माथुर
Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 20:18, 2 मई 2010 का अवतरण (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=शकुन्त माथुर |संग्रह=लहर नहीं टूटेगी / शकुन्त म…)
आज तो है हारा मन
चोट खाया मारा मन
चुप चुप सघन वन
बोझ भारी
दिखा कुछ कारगुजारी
सारा कुछ गोल-गोल
अब तो कुछ बोल मन
सभी कुछ रुका-रुका
मन तेरा थका-थका
चल-चल
पल-पल
कहाँ-कहाँ
तोड़ कर
जोड़ कर
पहुँच वहाँ
वहाँ, वहाँ
पहिले सा गीत बन
पहिले सा भीग मन