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मुझे मोह नहीं है / शकुन्त माथुर
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मुझे मोह नहीं है
उम्र का
ढलती है तो ढल जाए
जलती है तो जलती रहे
बुझती है तो बुझ जाए
मुझे उम्र ने कुछ दिया नहीं
या सकुच मैंने लिया नहीं
ग़लती की बारी-बारी
मैं हारी
खोए हैं लेने वाले क्षण
खोए हैं देने वाले क्षण
अब ठहर गई
यादों की लहर
और उन्हीं में
अब मैं
ठहरी हूँ।