भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

तमाम दिनों की तरह / नवीन सागर

Kavita Kosh से
Pradeep Jilwane (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 12:29, 3 मई 2010 का अवतरण (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=नवीन सागर |संग्रह=नींद से लम्‍बी रात / नवीन सागर…)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

चोंच से गिरा हुआ दाना
आज मुझ से कुचल गया
चींटियों की एक कतार पर चलता रहा मैं आज
अपाहिज से टकराया
धरती पर थाप देती छोटे से बच्‍चे की हथेली पर
मेरा पॉंव पड़ गया.

किसी का आना देख
मेरे दरवाजे बंद हो गए

मैं आज कोई अजनबी नहीं था
ठीक यही था जो अभी इस अंधेरे में
सिगरेट की चिनगी के पास.

मेरी जिंदगी का यह एक दिन
मेरे तमाम दिनों की तरह है
और मैं इसी तरह रोज
जागता हुआ रात में सोचता हूं कि
मेरी जिंदगी का यह एक दिन
मेरे तमाम दिनों की तरह है.