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बाहर जब दरवाज़े पर आयेगा / नवीन सागर
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हर एक के साहस का समय है
अकेला एक कायर सबको मार सकता है
पुरखे जो देकर गये जीवन
वह छीना जाएगा
जल्दी ही पुरखों के नाम पर पुरखों की हत्या होगी
घरों में कातिल घुसेगा जिंदगी ठीक-ठाक करने
सोने और जागने खाने-पीने और रोने हॅंसने
बोलने न बोलने का मरने-जीने का
फैसला करने
घरों में कातिल घुसेगा
और उसके नाम के मान सम्मान की झॉंकी होगी राजनीति.
झूठ उसकी माला में गूंथेगा सचाई
भीड़ उसके कदमों में गिरेगी पागल
वह कातिल पहले दिन से पहचाना जाएगा
पर आखिरी दिन तक मारा नहीं जाएगा
वह रूप बदल सब में समा जाएगा
वह भीतर पहले से होगा मौजूद
बाहर जब दरवाजे पर आएगा.