भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
नील-कमल सी हैं वे आँख / सुमित्रानंदन पंत
Kavita Kosh से
Dkspoet (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 14:32, 10 मई 2010 का अवतरण (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=सुमित्रानंदन पंत |संग्रह= गुंजन / सुमित्रानंदन …)
नील-कमल-सी हैं वे आँख!
डूबे जिनके मधु में पाँख—
मधु में मन-मधुकर के पाँख!
नील-जलज-सी हैं वे आँख!
मुग्ध स्वर्ण-किरणों ने प्रात
प्रथम खिलाए वे जलजात;
नील व्योम ने ढल अज्ञात
उन्हें नीलिमा दी नवजात;
जीवन की सरसी उस प्रात
लहरा उठी चूम मधु-वात,
आकुल-लहरों ने तत्काल
उनमें चंचलता दी ढाल;
नील नलिन-सी हैं वे आँख!
जिनमें बस उर का मधुबाल
कृष्ण-कनी बन गया विशाल,
नील सरोरुह-सी वे आँख!
रचनाकाल: जनवरी’ १९३२