Last modified on 15 मई 2010, at 13:49

बाहर योगाभ्यास रे जोगी / पवनेन्द्र पवन

द्विजेन्द्र द्विज (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 13:49, 15 मई 2010 का अवतरण

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)


बाहर योगाभ्यास रे जोगी
भीतर भोग-विलास रे जोगी

रात सुरा यौवन की महफ़िल
दिन को है उपवास रे जोगी

घर में चूल्हे-सी , जंगल में
दावानल-सी प्यास रे जोगी

सन्यासी के भेस में निकला
इन्द्रियों का दास रे जोगी

झोंपड़ छोड़ महल में रहना
ये कैसा सन्यास रे जोगी

मर्यादा को बंधन समझा
घर को कारावास रे जोगी

लोग हैं जितने ख़ास वतन में
उन सब का तू ख़ास रे जोगी

घर सूना कर ख़ूब रचाता
वृंदावन में रास रे जोगी

जब सुविधाएँ पास हों सारी
सब ऋतुएँ मधुमास रे जोगी

दूर ‘पवन’ को अब भी दिल्ली
तेरे बिल्कुल पास रे जोगी