भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
जादू / मुकेश मानस
Kavita Kosh से
Mukeshmanas (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 20:46, 15 मई 2010 का अवतरण (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna}} <poem> वक्त का जादू भोले-भाले मासूम बच्चे खेलते-खेलते गाय…)
वक्त का जादू
भोले-भाले मासूम बच्चे
खेलते-खेलते गायब हो जाएं
अल्ल-सुबह घूमने निकले बुजुर्ग
लौटकर घर न आएं
चहकती-महकती लड़कियां
ख़ौफ़ज़दा पुतलियों में बदल जाएं
देखते-देखते खुशबूदार फूल
धारदार शूल बन जाएं
हमने पहले तो नहीं देखा
भई वाह!
कैसा जबरदस्त जादू है
जो यह वक्त हमें दिखा रहा है।
जून 2000