भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
शून्य-3 / प्रदीप जिलवाने
Kavita Kosh से
Pradeep Jilwane (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 11:10, 17 मई 2010 का अवतरण
शून्य
सिर्फ शून्य नहीं होता
होता तो
यूँ लटकता हुआ दिखायी नहीं देता
माथे पर
हथोड़े की तरह
ठन - ठन चोट करता हुआ।
शून्य
सिर्फ शून्य होता तो
इतिहास में कहीं भी दर्ज नहीं होता
शून्य का कोई किस्सा
और सभ्यताओं के विकास में शून्य का हिस्सा।
शून्य
सिर्फ शून्य नहीं होता
होता तो
चीजों को एक से दस नहीं करता।
और फिर
ज्यादातर उधर क्यों खड़े होते
जिधर ज्यादा शून्य होते।