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कंधों पर बैठी हँसी / लीलाधर मंडलोई

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हत्‍या इतनी कलापूर्ण
कि हिंसा का कोई उदाहरण नहीं
अग्निस्‍नान की इस भाषा से गुजरता
मेरा दुख कि वह होने के उत्‍कर्ष में

थके हुए स्‍वर संधान का सच
नमक सा जलता आंखों के कोटर में
नदिया जहां भूल गई हैं बहना
हिमखण्‍ड सूखने को अवश

प्‍यार करने वाली निगाहें प्रश्‍नाकुल
भविष्‍य के अजाने भय की बेशिनाख्‍त मौजूदगी
अशक्‍त सच खुफिया तहखानों में कैद
आधुनिक मिथक बनते नये तथ्‍यों की फेहरिस्‍त

मेरे सामने गुजरते बिलखते गवाह
रात जिन्‍हें तोड़ा गया देह के सीमांत तक
मुआफिक नजीरों की आड़ में हाकिम
आकृतिनुमा शक्‍ल में जड़ कानून के जिरहबाज

इस इमारत पर सच की उलटबासियां मढ़ते
बचने के हुनर पर चौंककर सवाल करते लोग

क्‍या बचा कंधों पर बैठी हंसी के सिवाय