भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

नींद-3 / प्रदीप जिलवाने

Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 20:29, 17 मई 2010 का अवतरण (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=प्रदीप जिलवाने |संग्रह= }} {{KKCatKavita}} <poem> नींद वहाँ भी …)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

नींद वहाँ भी नहीं है
जहाँ धूप वर्जित है
और वहाँ भी नहीं
जहाँ सिर्फ धूप बची है
बीच की जगह है कोई

और यकीनन यह जगह है
बची है उम्मीद।
बचा है भरोसा।