ऊन के जीर्ण-शीर्ण मंदिर / प्रदीप जिलवाने
ऊन मध्यप्रदेश के खरगोन ज़िले का एक प्राचीन नगर, जहाँ के परमारकालीन मंदिर अपने वैभव और सांस्कृतिक-समृद्धि की कहानी ख़ुद ही कहते हैं। बाद में ये सारे मंदिर मुगल शासकों का निशाना बने थे।
अब यहाँ न कोई पूजा-पाठ होता है
और न कोई कर्मकाण्ड ही
न ही गर्भग्रह में कोई देवता बसता है अब
बस उलूक गश्त लगाते हैं रात भर
और दिन में चमगादड़ फरमाते हैं आराम यहाँ
सुना है
जब इन जीर्ण-शीर्ण मंदिरों में प्राण थे
तब इनमें सिंहारूढ़ देवताओं के चमत्कारों के किस्से
पृथ्वी के दूसरे हिस्सों तक मशहूर थे
कहा तो ये भी जाता है कि
सूर्य अपनी यात्रा इसी पवित्र नगरी से
करता था प्रारम्भ
और चन्द्रमाँ अपनी पहली किरणों से
इस पावन भूमि का करता था मस्तकाभिषेक।
और आज समय के माथे पर
इतिहास की बर्बरता के ये प्रत्यक्ष प्रमाण
महज आदमी के अंदर धार्मिक भावनाएँ ही आहत करते हैं
ध्वजाहीन ध्वस्त गुम्बदों से
अंदर झाँकते बीमार धूप के टुकड़े
वीभत्सता ही रचते हैं कुछ ज्यादा
समाज से बहिष्कृत कुष्ठ रोगियों-सी लाचार
दीवारों और खम्बों पर उत्कीर्ण भग्न शैल कृतियाँ और
कटे-पिटे सरों और टूटे-बिखरे धड़ों वाले देवता
जड़वत ताकते हैं भूले-बिसरे आ गये पर्यटकों
और इतिहासवेत्ताओं को
मुक्ति की उत्कट आकांक्षा और अभिप्राय से
जिसमें सोमनाथ न हो पाने की ईर्ष्या भी नहीं होती है
और न अयोध्या न हो पाने का दुःख ही होता है।