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क्या कर रही होगी जबलपुर में / लीलाधर मंडलोई
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कोई एक माह से मौजूद न होने पर
मौजूद हो अपनी उन्हंी सब दिनचर्याओं के साथ
आदतन चाय के समय 6 बजकर 15 मिनट
जब बज रही होती है शहनाई रेडियो पर
मेरे सिरहाने होती हो मानो बताती
6 बजकर 15 मिनट हो चुके चाय तैयार है
बिस्तर छोड़ते-छोड़ते मुझसे पहले
पहुंच जाती हो दर्पण के सामने और
ढूंढती जैसे लाल वाली बड़ी बिंदी
मेरे ठीक पीछे खड़े होने पर भी नहीं भूलती
बालों को झटक अपलक दर्पण में निहारना
दफ्तर जाने के पहले या कि लौटता हूं जब
नहीं भूलती उसी अंदाज में चहकना-गुनगुनाना
जाने के बाद से ही जबकि तब्दील हो गई हो तुम
इस चिडिया में और पूरी कर रही हो
सारी की सारी दिनचर्यायें यहां भी
सोचता हूं ठीक इन्हीं क्षण तुम
क्या कर रही होगी जबलपुर में?