भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

हाय, कोमल गुलाब के गाल / सुमित्रानंदन पंत

Kavita Kosh से
Dkspoet (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 11:27, 19 मई 2010 का अवतरण ("हाय, कोमल गुलाब के गाल / सुमित्रानंदन पंत" सुरक्षित कर दिया ([edit=sysop] (indefinite) [move=sysop] (indefinite)))

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

हाय, कोमल गुलाब के गाल
झुलस दे ऊष्मा का अभिशाप?
प्रथम यौवन, कलियों के जाल
स्वयं कुम्हला जाएँ चुपचाप!
विजन वन कुंजों में भर प्यार
तरुण बुलबुल गाती थी गान,
आज उसके उर के उद्गार
किधर हो गए विलीन अजान!