भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

आती हुई हवाएँ / अलका सर्वत मिश्रा

Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 12:20, 19 मई 2010 का अवतरण

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

आती हुई हवाएँ
मायूस होने लगी थीं
ख़ुशबू की तलाश में !
दुर्गन्ध का साम्राज्य था
हर तरफ फैला हुआ
आदमी तो आदमी
दिमाग तक सड़ा हुआ!!

भटकती ही रह गई
अंधेरी राहों पर
रोशनी की तलाश में !!

ज़िंदा आदमी की भी
बेनूर सी आँखें !

हवाओं को शंका हुई
अपने ही क़दम पर
कहीं ग़लत तो नहीं आई वे
ये धरती ही है न !!!